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ब्रह्म॑ प्र॒जाव॒दा भ॑र॒ जात॑वेदो॒ विच॑र्षणे। अग्ने॒ यद्दी॒दय॑द्दि॒वि ॥३६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

brahma prajāvad ā bhara jātavedo vicarṣaṇe | agne yad dīdayad divi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रह्म॑। प्र॒जाऽव॑त्। आ। भ॒र॒। जात॑ऽवेदः॑। विऽच॑र्षणे। अग्ने॑। यत्। दी॒दय॑त्। दि॒वि ॥३६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:36 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:36


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) धन से युक्त (विचर्षणे) बुद्धिमान् (अग्ने) अग्नि के समान गृहस्थ ! (यत्) जो ज्योति (दिवि) प्रकाश में (दीदयत्) प्रकाशित करती है, उससे (प्रजावत्) प्रजा में विद्यमान जिसमें उस (ब्रह्म) धन वा अन्न को (आ, भर) सब प्रकार से धारण वा पोषण करिये ॥३६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो अग्नि में, जो सूर्य्य में और जो बिजुली में तेज है, उसके विज्ञान से धन और धान्य की उन्नति करिये ॥३६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे जातवेदो विचर्षणेऽग्ने ! यद्दिवि दीदयत् तेन प्रजावद् ब्रह्माऽऽभर ॥३६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्म) धनमन्नं वा (प्रजावत्) प्रजा विद्यन्ते यस्मिंस्तत् (आ) (भर) (जातवेदः) जातवित्त (विचर्षणे) विचक्षण (अग्ने) अग्निरिव गृहस्थ (यत्) ज्योतिः (दीदयत्) द्योतयति (दिवि) प्रकाशे ॥३६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यदग्नौ यत्सूर्य्ये यद्विद्युति च तेजोऽस्ति तद्विज्ञानेन धनधान्यमुन्नेयम् ॥३६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! अग्नीमध्ये, सूर्यामध्ये व विद्युतमध्ये जे तेज आहे त्यांचे विज्ञान जाणून धनधान्याची उन्नती करा. ॥ ३६ ॥